Tuesday 13 March 2012

Revolution - 1

गुज़रा हूँ जिस राह से उस राह पर लोग खूं से लथपथ मिले है/ 
लोगो के पीठ में छुरा घोपने वाले ये " सियार " शेर की खाल के बने है /

अब इंसानियत का भी इन पर कोई असर नहीं होता ;
चंद नोटों की खातिर ये लोगो के साथ कत्लेआम करने लगे है /

कुछ इस कदर इन्होने इंसानियत को बदनाम किया है ..
लोग जीने की नहीं .. खुदा से मरने की फरियाद करने लगे है /

इस शहर और शहर के लोगो के हालातो को देखकर बस यही सोचता हूँ
शायद ये शहर पत्थरों का है या फिर इस शहर के लोग पत्थरों के बने है/

अब तो "अबाध्य " अपने वजूद के लियें एक क्रांति की दास्ताँ लिख दो ..
ये कब्र में दबे हुए मुर्दे भी कब्र में घुटन महसूस करने लगे है.. 
 

No comments: