गुज़रा हूँ जिस राह से उस राह पर लोग खूं से लथपथ मिले है/
लोगो के पीठ में छुरा घोपने वाले ये " सियार " शेर की खाल के बने है /
अब इंसानियत का भी इन पर कोई असर नहीं होता ;
चंद नोटों की खातिर ये लोगो के साथ कत्लेआम करने लगे है /
कुछ इस कदर इन्होने इंसानियत को बदनाम किया है ..
लोग जीने की नहीं .. खुदा से मरने की फरियाद करने लगे है /
इस शहर और शहर के लोगो के हालातो को देखकर बस यही सोचता हूँ
शायद ये शहर पत्थरों का है या फिर इस शहर के लोग पत्थरों के बने है/
अब तो "अबाध्य " अपने वजूद के लियें एक क्रांति की दास्ताँ लिख दो ..
ये कब्र में दबे हुए मुर्दे भी कब्र में घुटन महसूस करने लगे है..
लोगो के पीठ में छुरा घोपने वाले ये " सियार " शेर की खाल के बने है /
अब इंसानियत का भी इन पर कोई असर नहीं होता ;
चंद नोटों की खातिर ये लोगो के साथ कत्लेआम करने लगे है /
कुछ इस कदर इन्होने इंसानियत को बदनाम किया है ..
लोग जीने की नहीं .. खुदा से मरने की फरियाद करने लगे है /
इस शहर और शहर के लोगो के हालातो को देखकर बस यही सोचता हूँ
शायद ये शहर पत्थरों का है या फिर इस शहर के लोग पत्थरों के बने है/
अब तो "अबाध्य " अपने वजूद के लियें एक क्रांति की दास्ताँ लिख दो ..
ये कब्र में दबे हुए मुर्दे भी कब्र में घुटन महसूस करने लगे है..
No comments:
Post a Comment